खेल से खुलते शिक्षा के द्वार – बच्चों में सृजन चिंतन शक्ति का बहुआयामी विकास करता एक विद्यालय
संजय कुमार झा
कक्षा में कुछ नन्हें बच्चे अपने मेज़ कुर्सियों को जोड़ने की जद्दोजहद में लगे हैं । अरे ! यह तो बतख़ का आकार बन गया । उनके चेहरे पर सफलता का भाव उभरता है । एक दूसरे छात्र समूह के लिए यह खेल खेल में मिली चुनौती है । वह भी अपनी नन्हीं फ़ौज के साथ जुट जाता है । इस बार कक्षा के फर्नीचर एक नया आकार लेते हैं: हवाई जहाज़ । इस तरह कल्पनाओं की उड़ान के साथ नित नई रचनायें होती रहती हैं । जी नहीं, यह खेल का मैदान नहीं, कक्षा ही है पर अलग तरह की । बिहार की राजधानी पटना के व्यस्ततम मोहल्लों में से एक शास्त्रीनगर में पिछले चार साल से चल रहे स्कूल ऑफ़ क्रिएटिव लर्निंग में पढ़ाई का तौर तरीक़ा ही कुछ ऐसा है ।
इसलिए यहाँ की कक्षाओं में शिक्षकों के साथ बच्चों के भी श्यामपट्ट देख किसी को अजूबा नहीं लगता । हर कक्षा में पुस्तकालय और प्रयोगशाला है । रचनात्मकता के इस माहौल में ये बच्चे माचिस की डिब्बियाँ, ऊन, फ़ीते, मफलर आदि से तरह – तरह की रचनायें गढ़ते हैं । और कम्प्यूटर आदि के बाद जब गणित पढ़ने की बारी आती है तो ताश के पत्तों के प्रयोग से भी परहेज़ नहीं किया जाता । परिणाम ? चौथी कक्षा के एक छात्र संतोष कुमार की मानें तो “इसमें हमें मज़ा आता है, नई बातें सीखने को मिलती हैं”।
बच्चों में सीखने की कला और सृजन क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से स्थापित इस विद्यालय की अवधारणा कई स्थानों की विशिष्ट शिक्षण पद्धति का एक समन्वित रूप है और इसके पीछे कई मस्तिष्क काम कर रहे हैं । इनमें इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन की बिहार इकाई के प्रमुख डॉ अजय कुमार तथा वरिष्ठ आईएएस विजय प्रकाश शामिल हैं । नेतारहट – अब झारखंड में – स्थित ऐसे ही एक ऐसे विद्यालय से शिक्षित डॉ अजय और विजय प्रकाश सरीखे व्यक्तियों ने एसोसिएशन फॉर प्रमोशन ऑफ़ क्रिएटिव लर्निंग – जिसके वे क्रमशः अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष हैं – नाम की संस्था गठित कर उसके तहत यह विद्यालय खोला । इसका उद्देश्य वकॉल विजय प्रकाश, “समाज के हर तबके के बच्चों में सृजन क्षमता का विकास करना है” । यहाँ के शिक्षकों ने भी कुछ नये आयाम जोड़े । प्रधानाध्यापिका और बच्चों के बीच में मैम के बजाय आंटी के नाम से जानी जाने वाली डॉ मृदुला प्रकाश बताती हैं की “अनूठे तौर तरीक़े से पढ़ने की बात यहाँ के शिक्षकों को जापानी शिक्षा पद्धति के अध्ययन के बाद सूझी” जिसे इस स्कूल में अपनाने में देर नहीं की गई ।